पुरूष आयोग बनाने की माँग , सकारात्मक कदम घरेलू हिंसा से पीडि़त पति भी है लेकिन सहज स्वाभाविक शर्म के कारण कह नही पाते और कोई उसकी सुनता भी नही, मानता भी नही-अरविंद बाजपेयी
दाम्पत्य विवादों को पत्नी के विरूद्ध अपराध की तरह देखने और मानने के कारण पतियों का उत्पीड़न तेजी से बढ़ा है। हलाँकि सात वर्ष तक की सजा के आपराधिक मामलों मे विश्वसनीय साक्ष्य संकलित किये बिना गिरफ्तारी पर रोक लग जाने के कारण तत्काल जेल जाने का खतरा टल गया है।
परन्तु यदि पत्नी की मनमर्जी के अनुसार पति पक्ष समझौते के लिए तैयार नहीं होता तो उसे जमानत करानी ही पड़ती है और फिर विचारण का सामना करना पड़ता है जो कई वर्ष तक चलता है और इस दौरान कई बार पति को अपमान का शिका, भी होना पडता है । अदालत के सामने समझौते की बातचीत के दौरान उसे ही दबाया जाता है । दाम्पत्य विवादों को अपराध मानने की अवधारणा का उद्देश्य कुछ भी रहा हो परन्तु अब इसका जमकर दुरुपयोग हो रहा है।
वृद्ध दादा दादी और किशोर भाई बहनों को मुलजिम बना देना आम बात हो गई है दाम्पत्य विवाद पारिवारिक सामाजिक समस्या है और उसे इसी रूप में देखा जाना चाहिये। पारिवारिक ताना बाना और सामाजिक शक्तियाँ निरन्तर कमजोर होती जा रही है आज हर व्यक्ति अपने को केन्द्र बिन्दु मानकर निर्णय चाहता है जो पारिवारिक जीवन में सम्भव नहीं है।
सभी को एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना होगा। एक लड़की पत्नी के साथ माँ, बहन, बुआ, चाची, मामी और भाभी भी होती हैं इसलिए उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करने के पहले उसे और उसके माता पिता को सभी पारिवारिक पहलुओं पर विचार करना चाहिए और घर के स्तर पर पति पत्नी को अपने मतभेद दूर करने के अवसर दिये जाने चाहिए।
इन मुद्दों को सुलझाने के लिए मिडिएशन सेन्टर एक अच्छा विकल्प बन सकता था परन्तु मिडिएटर के रूप मे संवेदनशील, सामाजिक दृष्टि से जागरूक और अनुभवी लोगों की नियुक्ति न होने के कारण यह प्रक्रिया भी औपचारिकता से आगे नहीं बढ पा रही है जबकि इस प्रक्रिया को बुआ , मौसी, चाची , मामी , भाभी का विकल्प बनाने की जरूरत है ।