"पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने 'फॉरवर्ड पॉलिसी' अपनाई जिसमें कहा गया कि हमें एक-एक इंच चीन की ओर बढ़ना चाहिए। कार्यान्वयन के दौरान यह 'बैकवर्ड पॉलिसी' बन गई। यही वजह है कि अक्साई चीन पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में है। उसके जवान डेमचोक 'नाला' तक पहुँच गए।"
लद्दाख के लोकप्रिय सांसद जाम्यांग सेरिंग नामग्याल अनुच्छेद 370 पर संसद में दिए गए जोशीले भाषण के कारण पूरे देश में छा गए थे और जिस तरह से उन्होंने अब्दुल्ला व मुफ़्ती परिवार पर निशाना साधते हुए लद्दाख की जनता की राय सामने रखी, उससे सोशल मीडिया पर उनकी खूब चर्चा हुई। इसके बाद लद्दाख पहुँचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर वह अपने संसदीय क्षेत्र में तिरंगे के साथ नाचते नज़र आए थे। अब नामग्याल ने कॉन्ग्रेस सरकार पर रक्षा नीतियों में क्षेत्र की अनदेखी करने का बड़ा आरोप लगाया है।
नामग्याल ने कहा कि कॉन्ग्रेस सरकार की ग़लत नीतियों की वजह से ही चीन ने डेमचोक सेक्टर तक के इलाक़े पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि कॉन्ग्रेस ने तनावपूर्ण स्थितियों में भी तुष्टिकरण को अपनी प्राथमिकता बनाए रखा और न सिर्फ़ कश्मीर को बर्बाद किया बल्कि लद्दाख को भी काफी क्षति पहुँचाई। पीटीआई को दिए गए इंटरव्यू में लद्दाख के सांसद ने कहा:
“पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 'फॉरवर्ड पॉलिसी' अपनाई जिसमें कहा गया कि हमें एक-एक इंच चीन की ओर बढ़ना चाहिए। इसके कार्यान्वयन के दौरान यह 'बैकवर्ड पॉलिसी' बन गई। चीनी सेना लगातार हमारे क्षेत्र में घुसपैठ करती चली गई और हम लगातार पीछे हटते चले गए। यही वजह है कि अक्साई चीन पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवान डेमचोक 'नाला' तक पहुँच गए क्योंकि लद्दाख को कॉन्ग्रेस के 55 वर्षों के शासन में रक्षा नीतियों में उचित तवज्जो नहीं मिली।”
भारत और चीन सीमा को लेकर कई वर्षों से विवाद चलता आ रहा है और चीन की विस्तारवादी नीति के कारण उसके कई पड़ोसियों से सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं। चीन ने गुलाम कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर रखा है, जिसे अक्साई चीन के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा शक्सगम घाटी के बड़े हिस्से पर भी चीन का अवैध कब्ज़ा है। नामग्याल ने कहा कि कॉन्ग्रेस ने पथराव करने वालों को खुश किया और अलगाववादियों को संरक्षण दिया।
नामग्याल ने कहा कि लद्दाख में एक डिग्री कॉलेज है जो कश्मीर विश्वविद्यालय के तहत आता है। इससे हर काम के लिए छात्रों को श्रीनगर के चक्कर लगाने पड़ते हैं। अगर कश्मीर में कोई दिक्कत हो तो लद्दाखी छात्रों को भी पाठ्यक्रम पूरा करने में 3 की जगह 5 साल लग जाते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि बोधि भाषा के शिक्षकों के पदों को कश्मीरी भाषा के शिक्षकों के पदों में परिवर्तित कर दिया गया।